( तर्ज - सच्चे सेवक बनेंगे जब )
धर्मराज नेपाल ! यहाँ है ,
पशुपति ईश्वर का बासा |
वीर लोग सत्य के पुजारी ,
सु - विनय प्यारा गुण ऐसा || टेक ||
जिधर उधर सौंदर्य सृष्टि का ,
पर्वत का है परकोटा ।
हर मन्दर में बजती भेरी ,
मंगल गूंज उठे घण्टा ॥
राजाओं की परम्परा ,
सेवा का भावुक स्थान यहाँ ।
खाना - पीना सहज सरल है ,
खेती भी उपजाऊ यहाँ ॥ '
राजा महेंद्र प्रताप ' यहाँ के ,
श्रद्धा जिनकी साधू पर ।
स्वतंत्रता है सब बातों की ,
ना उनको शत्रु का डर ॥
हिंदूओं की अमर ज्योति का ,
प्रकाश है फैला खासा ।
वीर लोग सत्य के पुजारी , ॥ १ ॥
नेपालहि की कपिल वस्तु में ,
हुये बुद्ध भगवान सुना ।
गोरखनाथ का भारी आसन ,
पशुपति के सन्निध बना ॥
भारत का हर सन्त यहाँ पर ,
दर्शन करने आता है ।
एकमुखी रुद्राक्ष,शंख उजला
देखे सुख पाता है
भारत का संबंध यहाँ पर ,
सदियों से भी चलता है ।
आना - जाना सदा रहा है ,
आज भी फलता - फुलता है ॥
यही मारकर भौमासुर को ,
कृष्ण करे अबला रक्षा ।
वीर लोग सत्य के पुजारी ...॥ २ ॥
जनकनन्दिनी जनकपूर की ,
जो की है नेपाल निवासी ।
दशरथ पुत्र दुलारे राघव ,
भारत के है रहिवासी ॥
मेल मिला है , जुग जुग गावे ,
रामायण की यह बानी ।
प्रेम अमर है यही हमारा ,
गाते है पंडित - ज्ञानी ॥
राजा जनक विदेही होकर ,
जोते हल जोते आशा ।
वीर लोग सत्य के पुजारी ॥ ३ ॥
एकनिष्ठता हो जनता में ,
सच्चा राज चलाने की । '
राजनिष्ठ नेपाल ' कहावे ,
खासियत गाते नीको ॥
कला कुशलता बढे यहाँपर ,
शिक्षित हो जनता सारी ।
बच्चा बच्चा धर्मवान हो ,
वीर रहे सब नर - नारी ॥
राजा महेन्द्र के जन्म दिवस पर ,
हम गाते है बलिहारी ।
तुकड्यादास कहे कीर्तिकर ,
जुग जुग जीये सुखकारी ||
जिगर मित्र यह रहे सदाही ,
यही हमारी अभिलाषा ।
वीर लोग सत्य के पुजारी ...॥ ४ ॥
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